5 जून, यानि विश्व पर्यावरण दिवस। हर साल की तरह इस बार भी 5 जून, विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जायेगा और अगले ही दिन यानि 6 जून से किसी को ये याद भी नही रहेगा कि पर्यावरण का मतलब क्या है। अब यह दिन केवल रस्म अदायगी ही रह गया है।
पर्यावरण की समस्या से निपटने के लिए सन् 1972 में संय़ुक्त राष्ट्र संघ ने स्वीडन में विश्व भर के 119 देशों का प्रथम पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया था। जिसमें सभी 119 देशों ने इसे “एक ही पृथ्वी का सिद्वांत” मान्य किया था। तबसे प्रत्येक वर्ष 5 जून को सम्पूर्ण विश्व में इस दिन को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है।
पर्यावरण संऱक्षण अधिनियम सर्वप्रथम 19 नवम्बर 1986 को लागू हुआ था, जिसमें पर्यावरण की गुणवत्ता के मानक निर्धारित किये गये थे। पर्यावरण संऱक्षण के नियम इत्यादि तो बन गये, परन्तु इनमें पूर्ण-रूपेण अमल नही किया गया। आज प्राकृतिक पर्यावरण संतुलन की उपेक्षा की जा रही है। हम अपने आस-पास के खान-पान, रहन-सहन, वातावरण व संस्कृति को भी भूलते जा रहे है।
पर्यावरण का मतलब केवल पेङ-पौधे लगाना ही नही है अपितु भूमि प्रदूषण, जल प्रदूषण, वायु तथा ध्वनि प्रदूषण इत्यादि सभी से पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुँचता है। प्रदूषण की रोकथाम की जिम्मेदारी जहाँ सरकार की भी बनती है, वही स्वयं-सेवी संस्थानों और संगठनों को भी आगे-आकर अपने स्थानीय लोगो को व उनके सहयोग से पर्यावरण के प्रति जन-साधारण को जागृत एवं शिक्षित करने की तथा इससे होने वाली हानि की जानकारी देते रहने की भी बनती है।
पर्यावरण के साथ छेङ-छाङ वास्तव मे प्रकृति के साथ किये गये अपराध के तुल्य है। वास्तव में स्वच्छ पर्यावरण ही जीवन का आधार है, जबकि पर्यावरण प्रदूषण, जीवन के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगा देता है।
सुनलो गौर से दुनिया वालों
पेङ-पौधे अब लगाना है।
प्रदूषण मुक्त देश बनाके.
सुख-समृद्वि हमें फैलाना है।