सम्पूर्ण उत्तराखंड में आई
प्राकृतिक आपदा और उससे हुये नुकसान के बारे में तो सभी को विदित है। जब भी कोई
प्राकृतिक आपदा आती है तो उससे होने वाले जान-माल के नुकसान की भरपाई किया जाना
आसान नही होता है। परन्तु भारत देश बहुत ही बङा देश है तथा यहाँ तरह-तरह के लोग
एवं संस्कृति पाई जाती है। उसी क्रम में भारत देश का मीडिया भी है, जो सबसे तेज
है। भारत में मीडिया चैनल्स द्वारा किसी भी दुर्गम से दुर्गम स्थान पर पहुँच कर, सबसे
पहले समाचार दिखाये जाने की होङ सी लगी रहती है। पर ऐसे मीडिया का क्या फायदा,
जिसे केवल अपनी न्यूज से मतलब हो, बाकी किसी की परेशानी से कोई मतलब न हो।
उत्तराखंड
में आई प्राकृतिक आपदा के बाद उन तथस्ट स्थानों में, जहाँ हजारों जिंदगियाँ फँसी
हुई थी, कई मीडिया कर्मी वाले भी पहुँचे गये। हर एक मीडिया वाले ने उन सभी स्थानों
की एवं वहाँ फँसे हुये लोगो की स्थिति के बारे में सम्पूर्ण भारतवाशियों को अवगत
कराया। परन्तु किसी भी मीडिया कर्मी ने स्वयं की तरफ से एवं अपने मीडिया चैनल की
तरफ से, वहाँ फँसे हुये लोगों की, किसी भी प्रकार की कोई मदद नही की। बस लाइव
स्थिति का जायजा लेने में लगे रहे। इन सभी मीडिया कर्मियों को उन सभी आपदा ग्रस्त
स्थानों में जाने एवं आने की व्यवस्था चैनल्स द्वारा की गई थी। पर किसी भी मीडिया
चैनल से ये नही हुआ कि अगर वो अपने मीडिया कर्मी, उन स्थानों पर भेज रहे हैं, तो
कम से कम उनके साथ में कुछ खाने की सामग्री एवं राहत की सामग्री भी भेज दें, जिससे
वहाँ फँसे हुये लोगों को कुछ न कुछ तो मदद मिल ही सकती थी। परन्तु ऐसा कुछ भी नही
हुआ। उल्टे बहुत से मीडिया कर्मियों को वहाँ फँसे हुये लोगो से यह पूँछते हुये भी
देखा गया कि “आप 5-6 दिन से भूखे हैं, आप कैसा महसूस कर रहे हैं।” शायद उन्होनों ने ऐसी भूख कभी
सही ही नही, वरना उनको ये पूँछने की जरूरत नही पङती।
सभी मीडिया चैनल्स आपदा के समय
वहीँ की स्थिति का और सरकारी आदेशों का ही जायजा लेते रहें। लगभग 8-10 दिन बीत
जाने के पश्चात कई मीडिया चैनल्स द्वारा राहत कोष खोले गये। परन्तु अगर वक्त रहते
सरकार एवं ये मीडिया कर्मी चेते होते, काफी लोगो की जान को बचाया जा सकता था, जिन
लोगों ने सिर्फ भूख के कारण तङप-तङप कर दम तोङा है।