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रविवार, 2 मई 2010

दिमाग पर बढ़ता बोझ




वर्तमान समय में मनुष्य के दिमाग पर लगातार कार्य का बोझ बढ़ता ही जा रहा है । एक समय में एक व्यक्ति का दिमाग हर तरफ कार्य कर रहा है । उदाहरण के लिए - एक साधारण व्यक्ति एक ही समय में गाने सुनने के साथ लिखने का कार्य भी करता है तथा उसी समय वह व्यक्ति किसी अन्य कार्य के बारे में योजना भी बनता रहता है । इस प्रकार उस व्यक्ति का दिमाग एक ही समय में तीन कार्य एक साथ संपन्न करता है।
एक ही समय में एक से अधिक कार्य संपन्न करने हेतु दिमाग का अधिक उपयोग करने से एक व्यक्ति विशेष को कुछ लाभ पहुँचता है , तो कुछ हानि भी होती है । लाभ यह होता है उस व्यक्ति विशेष का दिमाग किसी भी कार्य को करने , सोचने , या योजना बनाने में तुरंत प्रतिक्रिया देता है तथा व्यक्ति को क्या करना चाहिए , इसके लिए भी तुरंत निर्देशित करता है। दिमाग के अधिक प्रयोग से व्यक्ति के ज्ञान में भी वृद्धि होती है।
दिमाग का अधिक उपयोग व्यक्ति विशेष के शरीर को हानि भी पहुंचाता है। यदि कोई व्यक्ति दिमाग का लगातार बहुत अधिक प्रयोग करता है , तो धीरे-धीरे उस व्यक्ति का दिमाग उसी मापन से विकसित होता जाता है और एक समय ऐसा आता है , जब उस व्यक्ति द्वारा कोई भी दिमाग सम्बंधित कार्य नहीं किया जाता है , तब भी उस व्यक्ति के दिमाग में लगातार रोजाना उपयोग के मपनार्थ क्रियाएं होती रहती है और वह लगातार उसी हिसाब से प्रतिक्रियाएं देता रहता है। फलस्वरूप व्यक्ति विछिप्त हो जाता है। अकेले में या सबके सामने न जाने क्या-क्या बोलता रहता है, इसी का उदः है।
अगर इसी प्रकार व्यक्ति विशेष के दिमाग पर लगातार बोझ बढ़ता रहा , तो वह दिन दूर नहीं, जब उन सभी कार्यों को एक साथ संपन्न करने वाले दिमागी मनुष्य विकसित हो जायेंगे।