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रविवार, 3 जुलाई 2011

हाले दिल






जिंदगी ने जख्म दिये बहुत,
पर हम उन्हे दिखा न पाये।
ढका तो बहुत सारी उम्र हमने,
पर हम उन्हें छिपा न पाये।

नही समझ पाये वो हाले दिल मेरा
तो कोई बात नही,
दुःख तो बस इस बात का है कि,
इस दर्दे दिल को उन्हे,
हम बता न पाये।

आती है याद हमें उनकी बहुत,
हम कभी भी उनको भूल न पाये।
गम तो बहुत हमे है उनके दूर जाने का,
पर वो इसे कभी समझ न पाये।

बाकी है आस इस दिल में अभी भी,
कि शायद कोई चमत्कार हो जाये।
कम हो जाये बीच के फासले फिर से,
दोस्त हमारे वो फिर से बन जाये।

रविवार, 5 जून 2011

विश्व पर्यावरण दिवस


5 जून, यानि विश्व पर्यावरण दिवस। हर साल की तरह इस बार भी 5 जून, विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जायेगा और अगले ही दिन यानि 6 जून से किसी को ये याद भी नही रहेगा कि पर्यावरण का मतलब क्या है। अब यह दिन केवल रस्म अदायगी ही रह गया है।

पर्यावरण की समस्या से निपटने के लिए सन् 1972 में संय़ुक्त राष्ट्र संघ ने स्वीडन में विश्व भर के 119 देशों का प्रथम पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया था। जिसमें सभी 119 देशों ने इसे एक ही पृथ्वी का सिद्वांत मान्य किया था। तबसे प्रत्येक वर्ष 5 जून को सम्पूर्ण विश्व में इस दिन को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है।

पर्यावरण संऱक्षण अधिनियम सर्वप्रथम 19 नवम्बर 1986 को लागू हुआ था, जिसमें पर्यावरण की गुणवत्ता के मानक निर्धारित किये गये थे। पर्यावरण संऱक्षण के नियम इत्यादि तो बन गये, परन्तु इनमें पूर्ण-रूपेण अमल नही किया गया। आज प्राकृतिक पर्यावरण संतुलन की उपेक्षा की जा रही है। हम अपने आस-पास के खान-पान, रहन-सहन, वातावरण व संस्कृति को भी भूलते जा रहे है।

पर्यावरण का मतलब केवल पेङ-पौधे लगाना ही नही है अपितु भूमि प्रदूषण, जल प्रदूषण, वायु तथा ध्वनि प्रदूषण इत्यादि सभी से पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुँचता है। प्रदूषण की रोकथाम की जिम्मेदारी जहाँ सरकार की भी बनती है, वही स्वयं-सेवी संस्थानों और संगठनों को भी आगे-आकर अपने स्थानीय लोगो को व उनके सहयोग से पर्यावरण के प्रति जन-साधारण को जागृत एवं शिक्षित करने की तथा इससे होने वाली हानि की जानकारी देते रहने की भी बनती है। 

पर्यावरण के साथ छेङ-छाङ वास्तव मे प्रकृति के साथ किये गये अपराध के तुल्य है। वास्तव में स्वच्छ पर्यावरण ही जीवन का आधार है, जबकि पर्यावरण प्रदूषण, जीवन के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगा देता है।

सुनलो गौर से दुनिया वालों
पेङ-पौधे अब लगाना है।
प्रदूषण मुक्त देश बनाके.
सुख-समृद्वि हमें फैलाना है।

शनिवार, 5 मार्च 2011

फूलों की खुशबू क्यों घट रही है ?






क्या आपने कभी सोचा की दिन-प्रतिदिन फूलों की खुशबू क्यों घट रही है ? एक रिपोर्ट के अनुसार फूलों की खुशबू से आकर्षित होकर फूलों पर बैठने वाली तितलियाँ एवं कीट अब इनके पास आने से कतरातें है। इसी कारण से कई महत्वपूर्ण परागण करने वाले कीट अब इस दुनियां से विलुप्त हो चुके है।

वैज्ञानिकों के अनुसार प्रदूषण विहीन स्थानों में फूलों की खुशबू १००० से १२०० मीटर तक पहुँचती है लेकिन वर्तमान प्रदूषित वातावरण में यह दूरी घटकर मात्र २०० से ३०० मीटर तक सिमट कर रह गई है। फलतः परागण करने वाले कीटों का फूलों तक पहुंचना अत्यंत कठिन होता जा रहा है , जिसके कारण पौधों में परागण की क्रिया बहुत कम या नहीं के बराबर हो पा रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार फूलों की खुशबू का ९० प्रतिशत भाग प्रदूषण समाप्त कर देता है। फूलों की खुशबू में पाय जाने वाले रसायन अत्यंत वाष्पशील होते है.और सरलता से ओजोन रेडीकल जैसे प्रदूषण से रासायनिक बंध बना लेते है, फलस्वरूप फूलों की खुशबू चली जाती है।