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रविवार, 8 अगस्त 2010

अध्ययन का बदलता स्वरूप


जिस तरह से समय परिवर्तन होता जाता है, उसी तरह से व्यक्ति का जीवन भी परिवर्तित होता रहता है। व्यक्ति की भावनाएँ, रहन-सहन का ढंग, खान-पान, पहनावा आदि सभी में कुछ न कुछ परिवर्तन होता जाता है। इसको इस तरह भी कह सकते हैं कि व्यक्ति समय के अनुसार ढलता जाता है।

इसी तरह अध्ययन के मामले में भी यही फार्मूला लागू होता है कि समय के साथ पढाई करने का ढंग परिवर्तित होता जा रहा है। अगर प्राचीनकाल से अबतक अध्ययन करने का ढंग का विश्लेषण किया जा जाये तो काफी परिवर्तन दिखाई देतें हैं।

प्राचीनकाल में एक विद्यार्थी धोती-कुर्ता पहनकर स्वच्छ हवा में वृक्ष के नीचे धरती में बैठकर अध्ययन करता था , औऱ ज्यादातर अध्ययन स्वरूप मौखिक तथा प्रैक्टिकल ज्ञान ही प्राप्त करता था एवं एक शिष्य गुरू को गुरू-दक्षिणा स्वरूप धन न देकर जो भी उसके सामर्थ्य में होता था, वो देता था। इसके साथ ही विद्यार्थी को अपने गुरू से किसी भी प्रकार के ट्यूशन इत्यादि पढने की आवश्यकता भी नही पढती थी। धीरे-धीरे समय परिवर्तित होता गया औऱ अध्ययन करने का ढंग भी बदलता गया। कुछ समय बाद गुरूकुल खुल गये, जहाँ कई विद्यार्थी एक साथ अध्ययन करते थे ओर साथ ही वहाँ रहने, उठने-बैठने की भी व्यवस्था होती थी। समय औऱ परिवर्तित हुआ तथा स्कूल-कालेज खुल गये, जहाँ विद्यार्थी स्टूल , मेज, कुर्सी इत्यादि में बैठकर, कापी-किताबों से अध्ययन करने लगे और अध्यापक विद्यार्थियों को श्यामपट्ट पर शिक्षा देने लगे। लेखन के लिए पेन्सिल, पेन, रबर इत्यादि का प्रयोग होने लगा। धीरे-धीरे समय औऱ आगे बढा तो स्कूल-कालेज के साथ विद्यार्थी ट्यूशन भी पढने लगे। फिर कुछ समय बाद कोचिंग सेन्टर भी खुल गये। देखते ही देखते कोचिंग सेन्टरों की संख्या में तेजी से बढोत्तरी हुई तो कोचिंगो में जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या भी तेजी से बढने लगी और ब्लैक बोर्ड के स्थान पर व्हाइट बोर्ड प्रयोग किये जाने लगा। अध्ययन का यही ढंग स्कूलों मे भी लागू हो गया। इसके बाद जो समय आया वह अध्ययन की दृष्टि से काफी परिवर्तनशील था। इस समय तेजी से स्कूल-कालेजों के साथ इंजीनियरिंग कालेज, स्नातक स्तर के कालेज तथा कई प्राईवेट संस्थान खुल गये। इनमें से बहुत से संस्थान विद्यार्थियों को पढाई के साथ-साथ हाँस्टल सुविधा, इन्वर्टर-जनरेटर सुविधा तथा ए0सी0 जैसी सुविधायें भी देने लगे। जिससे लोगों का इनके प्रति आर्कषण स्वाभाविक था। कई वर्षों तक ये सब चलता रहा और वह समय भी आ गया अर्थात वर्तमान समय जब एक विद्यार्थी शानदार कुर्सियों मे बैठकर एसी की ठंडक में प्रोजेक्टर तथा कम्प्यूटर की सहायता से सभी सुख-सुविधाओ सहित अध्ययन करने लगा।

अब भविष्य का तो पता नहीं पर अगर अध्ययन परिवर्तन की यही गति रही तो वह दिन भी दूर नही, जब विद्यार्थियों को स्कूल-कालेजों में शिक्षा एसी क्लास-रूम में बेड में बैठाकर दी जायेगी और यह छूट रहेगी कि कोई भी विद्यार्थी जब चाहे कुछ भी खा-पी सकता है कहीं भी टहलने जा सकता है। जब लौटकर आयेगा तो वह जहाँ पढाई छोङकर गया था. उसी के आगे से उसे पढाया जाने लगेगा।