हिन्दू धर्म में नाग पंचमी का पर्व एक विशेष महत्व रखता है। इस दिन कई मंदिरों में भव्य सजावट होती है, विशेषकर वे मंदिर जहाँ नागों के देवता अर्थात भगवान शंकर की पूजा होती है। इस दिन सपेरे जंगलों से एक से बढकर एक प्रजाति के साँपों को पकङकर लाते है और भक्तों की भक्ति की आङ में इनका प्रयोग अपने पेट-पालन के लिए करते हैं। ये दिन संपेरों के लिए विशेष कमाई का दिन होता है। संपेरों को इस बात की बिल्कुल भी फिक्र नहीं होती है कि वो जिस जानवर का प्रयोग करके अपना पेट-पालन के लिए कर रहे है, वास्तव में उस जानवर को भी पेट की भूख मिटाने के लिए कुछ मिला है या नहीं।
ऐसा प्रचलन है कि नाग पंचमी में भक्त सांपो को दूध पिलाते हैं और इसे बहुत पुण्य का कार्य समझा जाता है। लेकिन ये बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि सांप दूध नही पीते हैं, वो तो इनके मालिक अर्थात सपेरे साँपों को इतने दिन से भूखा रखे होते हैं कि जो भी साँप को दूध देता है, तो वह उसे भूख के कारण तुरन्त पी जाता है। साँपो को भूखा रखने से सपेरों को एक और फायदा होता है कि कई दिन से भूखा रहने के कारण साँप इतना कमजोर हो जाता है कि उसके शरीर की सारी फुर्ती समाप्त हो चुकी होती है और वह चुपचाप सपेरे की डलिया में भक्तों के दर्शनार्थ पङा रहता है।
यद्यपि नाग पंचमी बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है। लेकिन शायद लोगों को यह नही पता है कि वो जिसकी पूजा कर रहे हैं, जिसे दूध पिलाके पुण्य कमा रहे हैं, वास्तव में वो जानवर इन संपेरों को और उसके दर्शनाभिलाषी भक्तों को क्या आर्शीवाद दे रहा होगा।
थोड़े से स्वार्थ के लिए जानवरों पर अत्याचार किया जाता है और उनके परिणामों के बारे में कोई नहीं सोचता।
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